Menu
blogid : 4319 postid : 3

उत्सव का विषाद

ASCM : A Stupid Common Man
ASCM : A Stupid Common Man
  • 9 Posts
  • 155 Comments

वो यंग है. उसकी आंखों में दूसरो की तरह ही कुछ सपने हैं. मां-बाप ने उसका नाम उत्सव शायद ये सोच कर रखा है कि वो परिवार में उत्सव सरीखा होगा. उसके काम उत्साहित करेंगे. मगर वो दु:खी हैं. उत्सव के कारनामे भले ही उत्साह और उत्सव के प्रतीक नहीं मगर ये उत्सव के अंदर के विषाद के प्रतीक तो हैं ही. जी हां, मैं बात कर रहा हूं उत्सव शर्मा की. सिर्फ नाम ही काफी है. पहले फ्लैश बैक में चलिये फिर हम वापस टॉपिक पर लौटेंगे.

– प्रोफाइल –
नाम : उत्सव शर्मा

पिता का नाम : प्रो. एस. के. शर्मा (बीएचयू)

मां का नाम : प्रो. (डॉ.) इंदिरा शर्मा, मनो चिकित्सक (बीएचयू)

एजुकेशन : ग्रेजुएट इन फाइन आर्ट्स, बीएचयू विजुअल आर्ट्स फैकेल्टी में 2006 का गोल्ड मेडलिस्ट. बीएफए के बाद उत्सव ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन (अहमदाबाद) में एफएफए में एडमिशन लिया.

एक्स्ट्रा कैरिकुलर : स्पोर्ट्स में भी बेहतरीन.

पहली बार चर्चा में आया…
8 फरवरी 2010 को : इसी दिन उत्सव ने मीडिया परसन्स की भीड़ में शामिल होकर चंडीगढ़ में रुचिका मर्डर केस के आरोपी और हरियाणा के फॉर्मर डीजीपी एसपीएस राठौड़ पर कातिलाना हमला किया.

ये तो थी उत्सव और उसके पुराने कारनामे की बात. अब आज (25 जनवरी 2011) को उत्सव ने एक नया कारनामा किया है. उसने दिल्ली में सीबीआई कोर्ट के बाहर देश की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री आरुषि तलवार मामले में उसके पिता राजेश तलवार पर धारदार हथियार से हमला किया.
सुनने में ये बड़ी हैरानी वाली बात लगती है. जिस लड़के यानि उत्सव का न कभी आरुषि से कोई नाता था और न राजेश तलवार से, भला वो राजेश पर हमला क्यों करेगा. वो भी सब के सामने. मगर ये हैरानी वाली बात नहीं है. रुचिका केस के आरोपी एवं पूर्व डीजीपी एसपीएस राठौड़ पर जब उत्सव ने हमला किया था तो कहानी लगभग ऐसी ही थी. न तो उसका रुचिका से कभी कोई नाता था और न ही राठौड़ से कोई दुश्मनी थी. हां दोनों ही केस में कुछ चीजें कॉमन हैं…. दोनों बार हमले ऐसे सस्पेक्टेड पर किए गये जिन पर गंभीर आरोप थे मगर कोर्ट सजा नहीं सुना पा रही थी क्योंकि प्रॉपर सबूत नहीं मिल रहे थे. आरुषि मर्डर केस में सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट भी ये कह रही है कि राजेश तलवार एक सस्पेक्टेड हैं मगर हमारे पास कोई सबूत नहीं है. सिर्फ परिस्थितिजन्य चीजें राजेश की ओर इशारा कर रही हैं.
कोई बड़ी बात नहीं कि राजेश तलवार, जो एक प्रोफेशनल डाक्टर हैं उन्होंने मर्डर के बाद खुद को बचाने के लिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट में छेड़छाड़ करा दी हो, जिसका पहले से शक किया जा रहा है. ये भी बड़ी बात नहीं कि उन्होंने सबूतो को काफी साइंटिफिक ढंग से मिटा दिये हों क्योंकि वो एक डाक्टर हैं, और ये काम उनके लिए मुश्किल नहीं है. ये भी हो सकता है कि डॉ. तलवार ने आरुषि और हेमराज का मर्डर आवेश में आकर किया हो. इसमें उनकी वाइफ साथ न रही हो मगर अब बेटी खोने के बाद वो अपने पति को जेल में सड़ते नहीं देख सकती. लिहाजा उन्होंने भी अपना मुंह बंद कर रखा हो.
ये बातें जब मेरे जैसे स्टुपिड कॉमन मैन के दिमाग में आ सकती हैं तो उस उत्सव के दिमाग में क्यों नहीं आ सकती. मगर मैं जानता हूं कि कोई कुछ नहीं कर सकता. कानून को सबूत चाहिए. असली सबूत, जो इंडिया में मुश्किल से मिलते हैं. हां, फर्जी सबूत तो न्यायालय की चौखट के पास स्टाल लगा कर बिकते हैं. फर्जी सबूत और गवाहों की बदौलत तो हमारे कई ‘माननीय’ महिलाओं की अस्मत भी लूट रहे हैं और देश का धन भी. बड़े घोटालों में बड़े नेताओं की संलिप्तता जगजाहिर होने के बाद भी उन पर केस चलता रहता है. दागदार लोगों की अगुवाई में जांच कमेटी बनती है. एक-दो साल बाद हर कोई भूल जाता है.
ऐसा बार-बार होता है. चुनाव आते ही शायद इस बार भी लोग भूल जाएंगे कि मौजूदा सरकार ने कैसे थाली में चमक पैदा कर दी है. पहले ये चमक रोटी, सब्जी, दाल, प्याज, लहसुन, चावल से दबी रहती थी. अब चूंकि थाली में कुछ बचा ही नहीं है इसलिए चमक ही ज्यादा नजर आती है. हम ये भी भूल जाएंगे कि कैसे सरकार ने राडिया टेप के हिला देने वाली बातों को कई साल तक दबाए रखा जब कि टेप में दर्ज बातें राष्ट्रद्रोह से ज्यादा खतरनाक हैं. हम ये भी भूल जाएंगे कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला क्या है और कॉमनलवेल्थ में किसने कितना डकार लिया.
सॉरी… हम थोड़ा टॉपिक से दूर हो गए… चलिये फिर बात करते हैं उत्सव की. हां.. तो वो उत्सव है न.. बेसिकली बचपन में बहुत कॉमिक्स पढ़ता था. अभी ये शौक कम नहीं हुआ है. उत्सव को कॉमिक्स में सबसे अच्छी बात लगती है.. वो है फेल्योर सिस्टम को बचाने वाले सुपर हीरोज. बिलकुल राज कॉमिक्स के ‘डोगा’ की तरह. हां भाई, वही जो कुत्ते वाला माक्स पहनता है. गैरकानूनी ढंग से हथियार रखता है. कुत्ते उसके दोस्त हैं और वो कानून हाथ में लेकर कानून की रक्षा करता है. क्योंकि उसका अपना ही एक कानून है. वो कानून के बंधन में नहीं इसलिए क्विक जस्टिस पर विश्वास करता है.
अपने देश में न्याय व्यवस्था का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि यहां न्याय जब मिलता है, जब न्याय का मतलब नहीं रह जाता. अपराधी तब जेल के अंदर जाते हैं जब वो भीहड़ में पांच साल डकैती करते हैं. 15 साल संसद या विधान सभा में बैठकर लूटते हैं. बाद में सजा सुनाई जाती है. मगर तब तक ज्यादातर किए गए अपराध को सरकार माफ कर देती है. जो छोटे-मोटे अपराध बचते हैं, उनमें वो पांच-छह साल की जेल काटकर मैदान में आ जाते हैं. कुछ तो पिछड़े प्रदेशों के मुख्यमंत्री तक बन जाते हैं. जब कि निचली अदालत उनके खिलाफ उम्र कैद की सजा तक सुना चुकी होती है. राडिया टेप की वर्डिंग्स में बोले तो ‘यहां सब कुछ फिक्स होता है’. ऐसे में ऊपरी अदालत में न्याय भी फिक्स है.
उत्सव क़ा अपराध यही है कि उसने डोगा की तरह कानून हाथ में लेकर न्याय करने की कोशिश की है. उसे मनोरोगी कहा जा सकता है. वो शायद है भी. मगर मनोरोगी उसे बनाया किसने…??? उसके पैरेंट्स ने?? उसके फ्रेंड्स ने?? उसकी कलात्मक अभिरुचि ने??? कामिक्स ने??? ना, ये कहना गलत होगा… उसे मनोरोगी बनाया है अपने देश के सिस्टम ने. जी हां, वो भी एक स्टुपिड कॉमन मैन है जिसके अंदर एक आग है. वो न्याय चाहता है मगर जल्दी. समय से और अनफिक्ड. वरना ऐसी बहुत सी फिल्में जिसमें हीरो अपने तरह से न्याय पाने के मैसेज देते हैं. अमिताभ बच्चन की ‘आखिरी रास्ता’ की तरह. उत्सव का विषाद उसकी नजर में आखिरी रास्ता ही है. ये भी कहना गलत नहीं होगा कि उत्सव की नजर अब शीलू रेप के आरोपी और कानपुर में अनुष्का के रेप एंड मर्डर केस के आरोपियों पर हो…

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh